Publish Date: | Thu, 16 Sep 2021 11:35 AM (IST)
Gwalior Art Culture News: चेतना राठाैर, ग्वालियर नईदुनिया। राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के नाटक एवं रंगमंच संकाय के विभागाध्यक्ष डा. हिमांशु द्विवेदी ने थिएटर फॉर थिएटर चंडीगढ़ के फेसबुक, यूट्यूब पेज पर रंग संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें उन्होंने रंगमंच की परंपरा विविध शैलियां और रंगमंच के अलग से विभाग खोलने की बात रखी। उन्हाेंने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम अपनी नाट्य परंपराओं की पुनः समीक्षा कर फिर से व्याख्या करें। बहुत सारी परंपराएं अपने मूल स्वरूप से बदल चुकी हैं, जिनका वास्तव में मूल स्वरूप क्या था, यह कलाकारों को जानने की अति आवश्यकता है। इसके बाद ही हम रंगमंच के सही स्वरूप को समझ पाएंगे। रंगमंच की परंपराओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए भी कार्य किया जाना चाहिए। जब तक हम अपनी पुरानी परंपराओं को समझेगे नहीं, तब तक हम नई परंपराएं नहीं बना पाएंगे। रंगमंच एक समग्र कला होती है। जिसमें हमारी जितनी पुरानी परंपराएं हैं, उनके मूल स्वरूप को आज सिर्फ संरक्षण एवं संवर्धन करने की आवश्यकता ही नहीं बल्कि उन्हें प्रायोगिक स्तर पर भी लगातार करने की जरूरत है। इससे वह अपने अस्तित्व में रह पाएंगे और हमारे आने वाली युवा पीढ़ी को नए रंगमंच करने की तरफ प्रेरित करेंगी। पूरे विश्व में रंगमंच की अनेकों शैलियां हैं, जो एक अभिनेता को अपने जीवन में जानना समझना अति आवश्यक है, परंतु काम वह सिर्फ एक या दो शैलियों पर ही कर सकता है। जिससे उन शैलियों पर वह अपनी पकड़ बनाए और अच्छा काम करते हुए उस परंपरा को एक नई दिशा दें। आज हमारी वर्तमान रंगमंच की शिक्षण पद्धति उन परंपराओं और शैलियों से मात्र परिचय कराती है। हमें उन्हें गुरु शिष्य परंपरा की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक भेजने की अति आवश्यकता है। कार्यक्रम का संयोजन पंजाब कला भवन चंडीगढ़ के निदेशक वरिष्ठ रंगकर्मी सुदेश शर्मा ने किया।
Posted By: vikash.pandey

