उमरिया (मध्य प्रदेश) [संजय कुमार शर्मा]। देवी मां का द्वितीय स्वरूप है मां ब्रह्मचारिणी यानी एक ऐसी स्त्री जो अपने अभीष्ट को पाने के लिए सारे विरोध व कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करती है। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के छोटे से गांव खैरहा के रियासतदार परिवार की रत्ना सिंह मां के इसी स्वरूप को चित्रित करती हैैं। संपन्न परिवार के सुख-सुविधाओं वाले जीवन को छोड़कर रत्ना सिंह ने जंगल की राह पकड़ी और वाइल्ड लाइफ गाइड का करियर चुना। एक ऐसा करियर जो पुरुष प्रधान तो था ही, दुश्वारियों से भी भरा था।
बालिकाओं की शिक्षा जरूरी
करियर को हासिल करने के दौरान किए गए संघर्ष से रत्ना सिंह को यह भी सीखने को मिला कि जंगल को अगर सुरक्षित रखना है तो आसपास के गांव के लोगों को लाभ मिलना जरूरी है। अगर जंगल है तो उनका जीवन सुखमय है। इसी कारण उन्होंने सोचा कि जंगल से सटे हुए गांव में शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों को प्रशिक्षित कर और रोजगार दिलाकर जंगलों को बचाया जा सकता है। अपनी इस सोच के साथ वह भारत की पहली वाइल्ड लाइफ गाइड और फिर ट्रेनर बन गईं। आज न सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी वह ट्रेनिंग देने जा रही हैं।
30 वर्षीय रत्ना सिंह अपने करियर में ऐसी रची बसी हैैं कि कान्हा टाइगर रिजर्व क्षेत्र को ही अपना निवास बना लिया है और वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में भी काम कर रही हैैं।
ट्रेनिंग स्कूल से ट्रेनर तक का सफर
रत्ना ने वर्ष 2006 में ताज सफारी के नेचर ट्रेनिंग स्कूल में दाखिला लिया। ट्रेनिंग के बाद यहीं से ताज नेशनल ट्रेनिंग स्कूल और सीसी अफ्रीका संस्था के साथ काम करना शुरू किया। वर्ष 2011 में उन्होंने कान्हा टाइगर रिजर्व के पास रहने का फैसला किया और वहीं स्वतंत्र रूप से एक वाइल्ड लाइफ ट्रेनर के रूप में खुद को स्थापित किया। अब उन्हें देश के सभी टाइगर रिजर्व और पर्यटन क्षेत्रों में गाइड की ट्रेनिंग के लिए आमंत्रित किया जा रहा है। वर्ष 2021 में सतपुड़ा में महिलाओं को ट्रेनिंग देकर गाइड बनाया, जिन्हें फील्ड में भी उतारा गया।
थाईलैंड में भी दिया प्रशिक्षण
रत्ना सिंह ने बताया कि राजस्थान, उत्तराखंड, महाराष्ट्र के अलावा थाईलैंड में भी उन्होंने 15 सौ से ज्यादा महिला-पुरुष गाइड को अभी तक प्रशिक्षित किया है। रत्ना सिंह बताती हैं कि वन विभाग जो भी प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है उसमें उन्हेंं आमंत्रित किया जाता है और वह अपनी भूमिका को बेहतर ढंग से निभाने की कोशिश करती हैं।
पर्यटक और पर्यावरण की सुरक्षा को मानती हैं अहम
रत्ना सिंह कहती हैं कि जंगल में गाइड की बड़ी जिम्मेदारी होती है। उन्हें जंगल के बारे में सिर्फ पर्यटकों को जानकारी देने का काम नहीं करना होता है, बल्कि पर्यटक को सुरक्षित भी रखना होता है। पर्यावरण की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी गाइड के ही ऊपर होती है। इसका बड़ा उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि 2021 में प्रशिक्षण देने के दौरान पचमढ़ी में प्रशिक्षुओं को पर्यावरण संरक्षण के बारे में भी बताया। इसका परिणाम यह रहा कि एक सप्ताह के अंदर पचमढ़ी के कई पर्यटन स्थलों से प्रशिक्षुओं ने चार हजार किलो से ज्यादा कचरा निकाल कर सफाई कर दी।
वन संरक्षण को अफ्रीका जैसा माहौल जरूरी
रत्ना सिंह बताती हैं कि अफ्रीका में जंगलों के संरक्षण के लिए जो तरीके अपनाए जा रहे हैैं, वह भारत में भी जरूरी हैैं। अफ्रीका में स्थानीय लोगों को जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। ऐसा जंगल से उनके लिए रोजगार उत्पन्न करके किया जाता है। हमारे यहां जंगल से सटे गांव में रहने वाली जो लड़कियां हाईस्कूल और हायर सेकेंड्री तक की पढ़ाई करने के बाद घर पर बैठ जाती हैं, उन्हेंं गाइड और दूसरी ट्रेनिंग देकर काम पर लगाया जाए। इससे महिलाओं का जंगल के साथ कारोबारी रिश्ता बनेगा और जंगल सुरक्षित हो पाएंगे।
दृढ़ संकल्पशक्ति से तय किया सफलता का सफर
2006 में दिल्ली से इंटरनेशनल लॉ में परास्नातक करने के बाद जब रत्ना सिंह ने वाइल्ड लाइफ गाइड बनने का रास्ता चुना तो पुरुष बाहुल्य समाज में मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा। हालांकि वह अपने चुने रास्ते से डिगी नहीं। दृढ़ संकल्पशक्ति उनका सहारा बनी और उन्होंने अपनी इच्छा के सामने आने वाले हर अवरोध को सफलता से पार कर इतिहास रचा।
रत्ना सिंह बताती हैं, देश की पहली क्वालिफाइड वाइल्ड लाइफ गाइड बनने की राह आसान नहीं थी। घर पर सवाल होने शुरू हो गए थे कि आखिर मैं कैसा करियर चुन रही हूं। नेचर स्कूल में दाखिला लेने के बाद भी इसी तरह की समस्याएं सामने आईं। वाइल्ड लाइफ गाइड के तौर पर लोग अक्सर सिर्फ पुरुषों को ही देखते थे और एक महिला इस काम के लिए किसी को भी सही नहीं लग रही थी। हालांकि इन दिक्कतों का सामना डटकर किया और न सिर्फ एक क्वालिफाइड गाइड बनी बल्कि आज ट्रेनर के रूप में सबके सामने हूं।
देवियों, कोई भी राह मुश्किल नहीं होती
नवरात्र के अवसर पर रत्ना सिंह देश की नारी शक्ति को संदेश देती हैं कि कोई भी राह मुश्किल नहीं होती है। सिर्फ आपको उस राह पर चलने की शक्ति अपने अंदर जुटानी पड़ती है। महिलाओं को उस हर क्षेत्र में आगे आना चाहिए जो उन्हें अच्छा लगता है।